श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी7. चैतन्य-कालीन बंगाल
प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य करके वे वृन्दावन में जाकर रहने लगे। कहते हैं- वे जंगलों में जाकर सूखी लकडि़याँ ले आते। वे तीन या चार पैसे जितने में भी बिक जातीं उन्हें बेचकर एक पैसे के चने खाकर तो स्वयं निर्वाह करते थे, शेष पैसों को एक दूकानदार के यहाँ जमा कर देते थे। उन बचे हुए पैसों का तेल खरीदकर बंगाली गरीब यात्रियों तथा भक्तों को स्नान के पूर्व लगाने के लिये देते थे। धन्य है, भक्ति हो तो ऐसी हो। इस प्रकार महात्मा सुबुद्धि राय जी ने अपने पानी पीने के पाप का ही प्रायश्चित्त नहीं किया, जन्म-जन्मान्तरों के पापों का प्रायश्चित्त कर डाला। हुसेन खाँ ने राजगद्दी पर बैठते ही अपना शासन जमाने के लिये स्थान-स्थान पर अपने काजियों को नियुक्त किया। बहुत-से लोगों को इलाकों का ठेका दिया। वे एक प्रकार से पट्टेदार जमींदार ही समझे जाते थे, लोगों से लगान वसूल करके नियमित रकम तो बादशाह को देते, शेष जो बचती उसे अपने पास रख लेते। इस प्रकार नवद्वीप में बुद्धिमन्त खाँ, हरिपुरग्राम में गोवर्धनदास मजूमदार, कुलीनग्राम में मालाधर तथा खेतूरग्राम में कृणानन्ददत्त आदि इन कायस्थ जमींदारों को भी ठेके दिये गये। अधिकांश में ठेकेदार मुसलमान अथवा कायस्थ ही होते थे। नवद्वीप में चाँद खाँ नाम के एक क़ाज़ी की नियुक्ति की गयी और जगन्नाथ तथा माधव (जगाई-मधाई) नाम के क्रूरकर्मा दो ब्राह्मण भाइयों को वहाँ का कोतवाल बनाया गया। नवद्वीप के बेलपोखरिया नामक मोहल्ले में चाँद खाँ की कचहरी थी। उस समय क़ाज़ी मुंसिफ या जज का काम करते थे, वे हिन्दू-मुसलमानों के झगड़ों का फैसला करते थे, इसी प्रकार का एक मुलुक नाम का क़ाज़ी शान्तिपुर के समीप गंगा जी की धारा के पास रहता था। नवद्वीप उस समय बंगाल भर में विद्या का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र समझा जाता था। उसमें संस्कृत विद्या की पचासों पाठशालाएँ थीं, जो टोल के नाम से विख्यात थीं। दूर-दूर से विद्यार्थी आ-आकर नवद्वीप में विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करते और नवद्वीप के नाम को देशव्यापी बनाते। उस समय संस्कृत के प्रधान केन्द्र नवद्वीप ने बहुत-से लोकप्रसिद्ध पण्डितों को उत्पन्न किया। मिथिला से न्याय के ग्रन्थ को कण्ठस्थ करके उसका बंगाल और उड़ीसा में प्रचार करने वाले वासुदेव सार्वभौम उन दिनों नवद्वीप में ही पढ़ाते थे। उस समय के विद्वानों में नैयायिक रामचन्द्र, सार्वभौम विद्यावागीश, महेश्वर विशारद, नीलाम्बर चक्रवर्ती, अद्वैताचार्य गंगादास आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। |