श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी7. चैतन्य-कालीन बंगाल
सार्वभौम के विद्यार्थियों में रघुनाथदास, भवानन्द, रघुनन्दन, कृष्णानन्द तथा मुरारी गुप्त आदि लोकप्रसिद्ध और भारी विद्वान हुए। इस प्रकार उस समय नवद्वीप बंगाल भर में विद्या का एक प्रधान स्थान समझा जाता था। सैकड़ों विद्यार्थी एक साथ ही गंगा जी के घाटों पर स्नान करते और परस्पर में शास्त्र चर्चा करते बड़े ही भले मालूम पड़ते थे। चारों ओर पण्डितों की ही चहल-पहल रहती। कहीं न्याय की फक्किकाएँ चल रही हैं तो कहीं व्याकरण की पंक्तियाँ पूछी जा रही हैं। सभ्य और धनी-मानी पुरुषों में भी संस्कृत विद्या का आदर था। वे संस्कृत विद्या को आज की भाँति हेय नहीं समझते थे। इसी कारण अध्यापक तथा विद्यार्थियों को भोजन-वस्त्रों की कमी नहीं रहती। धनी पुरुष उनके खाने-पहनने का स्वयं ही श्रद्धा-भक्ति के साथ प्रबन्ध कर देते। ऐसी ही घोर क्रान्ति के समय में इस विद्या-व्यासंगिनी पुरी में महाप्रभु चैतन्यदेव का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी भक्ति-भागीरथी की बाढ़ में सभी पण्डितों के नास्तिकवाद को एक साथ ही बहा दिया। उनके भक्ति-भाव के ही कारण नवद्वीप भावुक भक्तों का अड्डा और भक्ति का केन्द्र बन गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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