श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी67. सज्जन-भाव
श्रीवास ताली पीट-पीट कर हंसने लगे और लोगों से कहने लगे- ‘देखो भाई! हम रात्रि में ऐसे ही चण्डी पूजा किया करते हैं। भद्रपुरुषों को आज स्पष्ट ही ज्ञात हो गया! भक्तों ने उन सभी सामान को उठाकर दूर फेंक दिया और उस स्थान को गोमय से लीपकर और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध किया। दूसरे ही दिन लोगों ने देखा गोपाल चापाल के सम्पूर्ण शरीर में गलित कुष्ठ हो गया है। उसके सम्पूर्ण शरीर में से पीब बहने लगा। इतने पर भी घाव खुजाते थे, खुजली के कारण वह हाय-हाय करके सदा चिल्लाता रहता था। नगर के लोगों ने उसे मुहल्ले में से निकाल दिया, क्योंकि कुष्ठ छूत की बिमारी होती है, वह बेचारा गंगा जी के किनारे एक नीम के पेड़ के नीचे पड़ा रहता था। एक दिन प्रभु को देखकर उसने दीन-भाव से कहा- ‘प्रभो! मुझसे बड़ा अपराध हो गया है। क्या मेरे इस अपराध को तुम क्षमा नहीं कर सकते? तुम जगत का उद्धार कर रहे हो, इस पापी का भी उद्धार करो। गांव-नाते से तुम मेरे भानजे लगते हो, अपने इस दीन-हीन मामा के ऊपर तुम कृपा क्यों नहीं करते? मैं बहुत दु:खी हूँ। प्रभो! मेरा दु:ख दूर करो। प्रभु ने कहा- ‘कुछ भी हो, मैं अपने अपराधी को तो क्षमा कर सकता हूँ; किंतु तुमने श्रीवास पण्डित का अपराध किया है। इसलिये तुम्हें क्षमा करने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है।’ बेचारा चुप हो गया और अपनी नीचता तथा दुष्टता फल कुष्ठ के दु:ख से दु:खी होकर वेदना के सहित भोगता रहा। थोड़े दिनों के पश्चात जब प्रभु संन्यास लेकर कुलिया में आये और यह कुष्ठी फिर इनके शरणापन्न हुआ तब इन्होंने उसे श्रीवास पण्डित के पास भेज दिया। श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘मुझे तो इनसे पहले भी कभी द्वेष नहीं था और अब भी नहीं है, यदि प्रभु ने इन्हें क्षमा कर दिया है, तो ये अब दु:ख से मुक्त हो ही गये। देखते-ही-देखते उसका सम्पूर्ण शरीर नीरोग हो गया। |