श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी67. सज्जन-भाव
सर्वसाधारण लोग धनिकों और प्रतिष्ठितों के प्रति उदासीन-से बने रहते हैं और अधिकांश दुष्ट -प्रकृति के लोग तो सदा धनी-मानी सज्जनों की निंदा ही करते रहते हैं। जहाँ चार लोगों ने किसी की प्रशंसा की, बस उसी समय उनकी अंदर छिपी ईर्ष्या भभक उठती है और वे झूठी-सच्ची बातों को फैलाकर जनता में उनकी निंदा करना आरंभ कर देते हैं। ऐसे निंदकों के दल से अवतारी पुरुष भी नहीं बचने पाये हैं। गौरांग महाप्रभु की भी बढ़ती हुई कीर्ति और उनके चारों और जनता में फैले हुए यश-सौरभ से क्षभित होकर निन्दक लोग उनकी भाँति-भाँति से निन्दा करने लगे। कोई तो उन्हें वाममार्गी बताता, कोई उन्हें ढोंगी कहकर अपने हृदय की कालिमा को प्रकट करता और कोई-कोई तो उन्हें धूर्त और बाजीगर तक कह देता। प्रभु सबकी सुनते और हंस देते। उन्होंने कभी अपने निन्दकों की किसी बात का विरोध नहीं किया। उलटे वे स्वयं निन्दकों की प्रशंसा ही करते रहते। उनकी सहनशीलता और विद्वेष करने वालों के प्रति भी करुणा के भावों का पता नीचे की दो घटनाओं से भली-भाँति पाठकों को लग जायगा। यह तो पाठकों को पता ही है कि श्रीवास पण्डित के घर संकीर्तन सदा किवाड़ बंद करके ही होता था। साल भर तक सदा इसी तरह संकीर्तन होता रहा। बहुत-से विद्वेषी और तमाशबीन देखने आते और किवाड़ों को बंद देखकर संकीर्तन की निन्दा करते हुए लौट जाते। उन्हीं ईर्ष्या रखने वाले विद्वेषियों में गोपाल चापाल नाम का एक क्षुद्र प्रकृति का ब्राह्मण था। वह प्रभु की बढ़ती हुई कीर्ति से क्षुभित-सा हो उठा, उसने संकीर्तन को बदनाम करने का अपने मन में निश्चय किया। एक दिन रात्रि में वह श्रीवास पण्डित के द्वार पर पहुँचा। उस समय द्वार बंद था और भीतर संकीर्तन हो रहा था। चापाल ने द्वार के सामने थोड़ी-सी जगह लीपकर वहाँ चण्डी की पूजा की सभी सामग्री रख दी। एक हांडी में लाल, पीली, काली बिन्दी लगाकर उसको सामग्री के समीप रख दिया। एक शराब का पात्रतथा एक पात्र में मांस भी रख दिया। यह सब रखकर वह चला गया। दूसरे दिन जब संकीर्तन करके भक्त निकले तो उन्होंने चण्डीपूजन की सामग्री देखी। खलों का भी दल आकर एकत्रित हो गया और एक-दूसरे को सुनाकर कहने लगे- ‘हम तो पहले ही जानते थे, ये रात्रि में किवाड़-बंद करके और स्त्रियों को साथ लेकर जोर-जोर से तो हरिध्वनि करते हैं और भीतर-ही-भीतर वाममार्ग की पद्धति से भैरवी-चक्र का पूजन करते हैं। ये सामने काली की पूजा की सामग्री प्रत्यक्ष ही देख लो। जो लोग सज्जन थे, वे समझ गये कि यह किसी धूर्त का कर्तव्य है। सभी एक स्वर से ऐसा करने वाले धूर्त की निन्दा करने लगे। |