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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
60. भगवद्भाव की समाप्ति
वे बार-बार प्रभु के इस वाक्य को स्मरण करने लगे- ‘अच्छा तो लो अब हम जाते हैं।’ बहुत-से तो इससे अनुमान लगाने लगे कि प्रभु सचमुच हमें छोड़कर चले गये। बहुत-से कहने लगे- ‘यह बात नहीं, वह तो प्रभु के ऐश्वर्य और तेज के संबंध का भाव था, हमारे गौरहरि तो थोड़ी देर में चैतन्य लाभ कर लेंगे। किंतु उनका यह अनुमान ठीक होता दिखायी नहीं देता था, प्रात:काल से प्रतीक्षा करते-करते दोपहर हो गया, किंतु प्रभु की दशा में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ। वे उसी भाँति संज्ञाशून्य पड़े रहे।
ज्येष्ठ का महीना था, भक्तों को बैठे-बैठे तीस घंटे हो गये। प्रभु की दशा देखकर सभी व्याकुल हो रहे थे। सभी उसी भाव से प्रभु को घेरे हुए बैठे थे, न कोई शौच-स्नान को गया और न किसी को भूख-प्यास की सुधि रही, सभी प्रभु के भाव में अधीर हुए चुपचाप बैठे थे। बहुतों ने तो निश्चय कर लिया था कि यदि प्रभु को चेतना लाभ न हुई तो हम भी यहीं बिना खाये-पीये प्राण त्याग देंगे। इसी उद्देश्य वे बिना रोये-पीटे धैर्य के साथ प्रभु के चारों ओर बैठे थे। कल प्रात:काल श्रीवास पण्डित के घर के किवाड़ जो बंद किये गये थे, वे ज्यों-के-त्यों बंद ही थे, प्रात:काल कोई भी निकलकर बाहर नहीं गया। इस घटना की सूचना शचीमाता को भी देना उचित नहीं समझा गया। क्योंकि वहाँ तो प्राय: सब-के-सब अपने-अपने प्राणों की बाजी लगाये हुए बैठे थे। इसी बीच एक भक्त ने कहा- ‘अनेकों बार जब प्रभु मूर्च्छित हुए हैं, तो संकीर्तन की सुमधुर ध्वनि सुनकर ही सचेत हुए हैं। क्यों नहीं प्रभु को चैतन्यता लाभ कराने के निमित्त संकीर्तन किया जाय।’ यह बात सभी को पसंद आयी और सभी ओर से प्रभु को घेरकर संकीर्तन करने लगे। सभी भक्त अपने कोमल कण्ठों से करुणामिश्रित स्वर तालस्वर के साथ-वाद्य बजाकर-
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
इस महामंत्र का संकीर्तन करने लगे। संकीर्तन की नवजीवन-संचारी प्राणों से भी प्यारी धुनि को सुनकर प्रभु के शरीर में रोमांच-से होने लगे। सभी को प्रभु का शरीर पुलकित-सा प्रतीत होने लगा। अब तो भक्तों के आनंद की सीमा नहीं रही। वे नाम-संकीर्तन छोड़कर प्रेम में विह्वल हुए पद-संकीर्तन करने लगे। प्रभु के शरीर की पुन: परीक्षा करने के निमित्त अद्वैताचार्य ने उनकी नासिका पर अपना हाथ रखा। उन्हें श्वासों का गमनागमन प्रत्यक्ष प्रतीत होने लगा। इतने में ही प्रभु ने एक जोर की हुंकार मारी। हुंकार को सुनते ही भक्तों की विषण्ण मण्डली में आनंद की बाढ़-सी आ गयी। वे उन्मत्तभाव से जोरों की जय-ध्वनि करने लगे। आकाशव्यापी तुमुल ध्वनि के कारण दिशाएं गूंजने लगीं।
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