श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी29. दिग्विजयी का पराभव
इस पर निमाई पण्डित ने धीरे से कहा- ‘कुछ भगवती भागीरथी की महिमा का ही बखान कीजिये जिससे कर्ण भी पवित्र हों और काव्यामृत का भी रसास्वादन हो।’ इतना सुनते ही दिग्विजयी धारा-प्रवाह से गंगा जी के महत्त्व के श्लोक बोलने लगे। सभी श्लोक नवीन ही थे, वे तत्क्षण नवीन श्लोकों की रचना करते जाते और उन्हें उसी समय बोलते जाते। उन्हें नवीन श्लोक बनाने में न तो प्रयास करना पड़ता था, न एक श्लोक के बाद ठहरकर कुछ सोचना ही पड़ता था। जैसे किसी को असंख्य श्लोक कण्ठस्थ हों और वह जिस प्रकार जल्दी-जल्दी बोलता जाय, उसी प्रकार दिग्विजयी श्लोक बोल रहे थे। सभी विद्यार्थी विस्मितभाव से एकटक होकर दिग्विजयी की ओर आश्चर्यभाव से देख रहे थे। सभी के चेहरों से महान आश्चर्य- अद्भुत संभ्रम-सा प्रकट हो रहा था, उन्होंने इतनी विद्या-बुद्धिवाला पुरुष आज तक कभी देखा ही नहीं था। विद्यार्थियों के भावों को समझकर दिग्विजयी मन-ही-मन अत्यन्त प्रसन्न होते जाते थे और दूने उत्साह के साथ चमक और अनुप्रासयुक्त श्लोकों को सुमधुर कण्ठ से बोलते जाते थे। एक घड़ी भी नहीं हुई कि वे सौ से अधिक श्लोक बोलकर चुप हो गये। घाट पर सन्नाटा छा गया। गंगा जी का कलरव बंद हो गया, मानो इतनी उतावली गंगा माता भी दिग्विजयी के लोकोत्तर काव्य-रस से प्रवाहित होकर उसे अपने प्रवाह में मिलाने के लिये कुछ काल के लिये ठहर गयी हो। उस नीरवता को भंग करते हुए मधुर और गम्भीर स्वर में निमाई पण्डित बोले- ‘महाराज! हम सब लोग आज आपकी अमृतमयी वाणी सुनकर कृतार्थ हुए। हमने ऐसा अपूर्व काव्य कभी नहीं सुना था, न आप-जैसे लोकोत्तर कवि के ही कभी दर्शन किये थे। आपके काव्य को आप ही समझ भी सकते हैं। दूसरे की क्या सामर्थ्य है, जो ऐसे सुललित काव्य को यथावत समझ ले। इसलिये इनमें से किसी एक श्लोक की व्याख्या और गुण-दोष हम और सुनना चाहते हैं।’ कुछ गर्व के साथ हँसते हुए दिग्विजयी ने कहा- ‘केशव की कमनीय कविता में दोष तो दृष्टिगोचर हो ही नहीं सकते। हाँ, व्याख्या कहो तो कर दूँ। बताओ किस श्लोक की व्याख्या चाहते हो’ यह बात दिग्विजयी ने निमाई पण्डित को युक्ति से चुप करने के ही लिये कह दी थी। वे समझते थे मेरे सभी श्लोक नवीन हैं, मैं जल्दी-जल्दी में उन्हें बोलता गया हूँ, ये उनमें से किसी को बता ही न सकेंगे, इसलिये यह बात यहीं समाप्त हो जायगी। किन्तु निमाई भी कोई साधारण पण्डित नहीं थे। |