श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी29. दिग्विजयी का पराभव
महत्त्वं गंगायाः सततमिदमाभाति नितरां इस श्लोक को बोलकर आपने कहा- ‘इसकी व्याख्या और गुण-दोष कहिये।’ निमाई के मुख से अपने श्लोक को यथावत सुनकर दिग्विजयी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उनका मुख फीका पड़ गया। सभी एकटक होकर निमाई की ओर देखने लगे, मानो दिग्विजयी की श्री, प्रतिभा, कान्ति और प्रभा निमाई के पास आ गयी हो। कुछ बनावटी उपेक्षा-सी करते हुए कहा- ‘आप बड़े चतुर हैं, मैं इतनी जल्दी-जल्दी श्लोक बोलता था, उनके बीच में से आपने श्लोक को कण्ठस्थ भी कर लिया। निमाई ने धीरे से नम्रतापूर्वक कहा- ‘सब आपकी कृपा है, कृपया इस श्लोक की व्याख्या और गुण-दोष सुनाइये।’ दिग्विजयी ने कहा- ‘यह अलंकार का विषय है, तुम वैयाकरण हो, इसे क्या समझोगे?’ इन्होंने नम्रता के साथ कहा- ‘महाराज! हमने अलंकार-शास्त्र का यथावत अध्ययन नहीं किया है तो उसे सुना तो अवश्य है, कुछ तो समझेंगे ही। फिर यहाँ अलंकार-शास्त्र के ज्ञाता बहुत-से छात्र तथा पण्डित भी बैठे हुए हैं, उन्हें ही आनन्द आवेगा।’ अब दिग्विजयी अधिक टालमटोल न कर सके, वे अनिच्छापूर्वक बेमन से श्लोक की व्याख्या करने लगे। व्याख्या के अनन्तर उपमालंकार और अनुप्रासादि गुण बताकर दिग्विजयी चुप हो गये। तब निमाई पण्डित ने बड़ी नम्रता के साथ कहा- ‘आज्ञा हो और आप अनुचित न समझें तो मैं भी इस श्लोक के गुण-दोष बता दूँ?’ मानो क्रुद्ध सर्प पर किसी ने पाद-प्रहार कर दिया हो, संसार विजयी सरस्वती के वर प्राप्त दिग्विजयी पण्डित के श्लोक में यह युवक अध्यापक दोष निकालने का साहस करता है, उन्होंने भीतर के दोष से बनावटी प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ‘अच्छा बताओ, श्लोक में क्या गुण-दोष हैं?’ निमाई पण्डित अब श्लोक की व्याख्या करने लगे। उन्होंने कहा- ‘श्लोक बड़ा ही सुन्दर है, वैसे लगाने से तो सैकड़ों गुण-दोष निकल सकते हैं, किन्तु मुख्यरूप से इसमें पाँच गुण हैं और पाँच दोष हैं।’ दिग्विजयी ने झुँझलाकर सिर हिलाते हुए कहा- ‘बताओ न कौन-कौन-से दोष हैं?’ निमाई ने उसी सरलता के साथ कहा- पहले श्लोक के गुण ही सुनिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इस श्लोक का भाव यह है, कि इस गंगा देवी का महत्त्व सर्वदा देदीप्यमान है? इसी कारण यह बड़ी ही सौभाग्यशालिनी हैं। इनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु भगवान के चरण कमल से हुई है। इनके चरणों की द्वितीय लक्ष्मी की भाँति सुर-नरगण सदा पूजा अर्चा करते रहते हैं। वे अदभुत गुण वाली देवी, भवानी के स्वामी श्रीमहादेव जी सिर पर से प्रवाहित हुई हैं।