श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी26. पूर्व बंगाल की यात्रा
भारतवर्षभर में संस्कृत-विद्या का प्रचार था। बिना संस्कृत पढे़ कोई भी मनुष्य सभ्य कहला ही नहीं सकता था। बंगाल में ब्राह्मण ही संस्कृत-विद्या के पण्डित नहीं थे, किन्तु कायस्थ, वैश्य तथा अन्य जाति के कुलीन पुरुष भी संस्कृत-विद्या के पूर्ण ज्ञाता थे। उस समय पण्डितों की दो ही वृत्तियाँ थीं, या तो वे पठन-पाठन करके अपना निर्वाह करें या किसी राजसभा का आश्रय लें। पण्डित सदा से ही दरिद्र होते चले आये पूर्व बंगाल की यात्रा हैं, इसका कारण एक कवि ने बहुत ही सुन्दर सुझाया है। उसने एक इतिहास बताते हुए कहा है कि ब्रह्मा जी के सुकृति (लक्ष्मी) और दुष्कृति (दरिद्रता) दो कन्याएँ थीं। सुकृति बड़ी थी, इसलिये विवाह के योग्य हो जाने पर ब्रह्मा जी ने उसे बिना ही सोचे-समझे मूर्ख को दे डाला। मूर्ख के यहाँ उसकी दुर्गति देखकर ब्रह्मा जी को बड़ा पश्चात्ताप हुआ। तभी से वे दूसरी पुत्री दुष्कृति के लिये अच्छा-सा वर खोज रहे हैं, जिसे भी विद्वान, कुलीन और सर्वगुणसम्पन्न देखते हैं उसे ही दरिद्रता को दे डालते हैं। निमाई पण्डित विद्वान थे, गुणवान थे, रूपवान और तेजवान भी थे, भला ऐसे योग्य वर को ब्रह्मा जी कैसे छोड़ सकते थे? उनके यहाँ भी दरिद्रता का साम्राज्य था, किन्तु वह निमाई पण्डित को तनिक व्यथा नहीं पहुँचा सकती। उनके सामने सदा हाथ बाँधे दूर ही खड़ी रहती थी। निमाई उसकी जरा भी परवा नहीं करते थे। उन दिनों योग्य और नामी पण्डित देश-विदेशों में अपने योग्य छात्रों के साथ भ्रमण करते थे, सद्गृहस्थ उनकी धन, वस्त्र और खाद्य-पदार्थों के द्वारा पूजा करते थे। आज की भाँति पण्डितों की उपेक्षा कोई भी नहीं करता था। निमाई की भी पूर्व बंगाल में भ्रमण करने की इच्छा हुई। उन्होंने अपनी माता की अनुमति से अपने कुछ योग्य छात्रों के साथपूर्व बंगाल की यात्रा की। उस समय लक्ष्मी देवी को अपने पितृगृह में रख गये थे। श्रीगंगा जी को पार करके निमाई पण्डित अपने शिष्यों के साथ पद्मा नदी के तट पर राढ़-देश में पहुँचे। बंगाल में भगवती भागीरथी की दो धाराएँ हो जाती हैं। गंगा जी की मूल शाखा पूर्व की ओर जाकर जो बंगाल के उपसागर में मिली है, उसका नाम तो पद्मावती है। दूसरी जो नवद्वीप होकर गंगा सागर में जाकर समुद्र से मिली है उसे भागीरथी गंगा कहते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के ओर दक्षिण-तट से लेकर पद्मा नदी पर्यन्त के देश को राढ़-देश कहते हैं। पहले ‘बंगाल’ इसे ही कहते थे। |