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− | महाप्रभु प्रेम में विभोर होकर संकीर्तन के मध्य में नृत्य करने लगे। आज महाप्रभु को संकीर्तन में बहुत ही अधिक आनन्द आया। उनके शरीर में प्रेम के सभी सात्त्विक विकार उदय होने लगे। भक्तवृन्द आनन्द में मग्न होकर संकीर्तन करने लगे। पुरी-निवासियों ने आज से पूर्व ऐसा संकीर्तन कभी नहीं देखा था। सभी आश्चर्य के साथ भक्तों का नाचना, एक दूसरे को आलिंगन करना, मूर्च्छित होकर गिर पड़ना तथा भाँति भाँति के सात्त्विक विकारों का उदय होना आदि अपूर्व दृश्यों को देखने लगे। महाराज प्रतापरुद्र जी भी अट्टालिका पर चढ़कर प्रभु का नृत्य संकीर्तन देख रहे थे। प्रभु के उस अलौकिक नृत्य को देखकर महाराज की प्रभु से मिलने की इच्छा और अधिकाधिक बढ़ने लगी। | + | महाप्रभु प्रेम में विभोर होकर संकीर्तन के मध्य में नृत्य करने लगे। आज महाप्रभु को संकीर्तन में बहुत ही अधिक आनन्द आया। उनके शरीर में प्रेम के सभी सात्त्विक विकार उदय होने लगे। भक्तवृन्द आनन्द में मग्न होकर संकीर्तन करने लगे। पुरी-निवासियों ने आज से पूर्व ऐसा संकीर्तन कभी नहीं देखा था। सभी आश्चर्य के साथ भक्तों का नाचना, एक दूसरे को आलिंगन करना, मूर्च्छित होकर गिर पड़ना तथा भाँति-भाँति के सात्त्विक विकारों का उदय होना आदि अपूर्व दृश्यों को देखने लगे। महाराज प्रतापरुद्र जी भी अट्टालिका पर चढ़कर प्रभु का नृत्य संकीर्तन देख रहे थे। प्रभु के उस अलौकिक नृत्य को देखकर महाराज की प्रभु से मिलने की इच्छा और अधिकाधिक बढ़ने लगी। |
महाप्रभु ने [[कीर्तन]] करते करते ही भक्तों के सहित मन्दिर की प्रदक्षिणा की और फिर शाम को आकर भगवान की पुष्पांजलि के दर्शन किये। सभी भक्त एक स्वर में भगवान के स्तोत्रों का पाठ करने लगे। पुजारी ने सभी भक्तों को प्रसादी-माला, [[चन्दन]] तथा प्रसादान्न दिया। भगवान की प्रसादी पाकर प्रभु भक्तों के सहित अपने स्थान पर आये। काशी मिश्र ने सायंकाल के प्रसाद का पहले से ही प्रबन्ध कर रखा था, इसलिये प्रभु ने सभी भक्तों को साथ लेकर प्रसाद पाया और फिर सभी [[भक्त|भक्त]] प्रभु की अनुमति लेकर अपने अपने ठहरने के स्थान में सोने के लिये चले गये। इस प्रकार गौड़ीय भक्त जितने दिनों तक पुरी में रहे, महाप्रभु इसी प्रकार सदा उनके साथ आनन्द-विहार और कथा-कीर्तन करते रहे। | महाप्रभु ने [[कीर्तन]] करते करते ही भक्तों के सहित मन्दिर की प्रदक्षिणा की और फिर शाम को आकर भगवान की पुष्पांजलि के दर्शन किये। सभी भक्त एक स्वर में भगवान के स्तोत्रों का पाठ करने लगे। पुजारी ने सभी भक्तों को प्रसादी-माला, [[चन्दन]] तथा प्रसादान्न दिया। भगवान की प्रसादी पाकर प्रभु भक्तों के सहित अपने स्थान पर आये। काशी मिश्र ने सायंकाल के प्रसाद का पहले से ही प्रबन्ध कर रखा था, इसलिये प्रभु ने सभी भक्तों को साथ लेकर प्रसाद पाया और फिर सभी [[भक्त|भक्त]] प्रभु की अनुमति लेकर अपने अपने ठहरने के स्थान में सोने के लिये चले गये। इस प्रकार गौड़ीय भक्त जितने दिनों तक पुरी में रहे, महाप्रभु इसी प्रकार सदा उनके साथ आनन्द-विहार और कथा-कीर्तन करते रहे। |
01:03, 11 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी115. भक्तों के साथ महाप्रभु की भेंट
महाप्रभु ने कीर्तन करते करते ही भक्तों के सहित मन्दिर की प्रदक्षिणा की और फिर शाम को आकर भगवान की पुष्पांजलि के दर्शन किये। सभी भक्त एक स्वर में भगवान के स्तोत्रों का पाठ करने लगे। पुजारी ने सभी भक्तों को प्रसादी-माला, चन्दन तथा प्रसादान्न दिया। भगवान की प्रसादी पाकर प्रभु भक्तों के सहित अपने स्थान पर आये। काशी मिश्र ने सायंकाल के प्रसाद का पहले से ही प्रबन्ध कर रखा था, इसलिये प्रभु ने सभी भक्तों को साथ लेकर प्रसाद पाया और फिर सभी भक्त प्रभु की अनुमति लेकर अपने अपने ठहरने के स्थान में सोने के लिये चले गये। इस प्रकार गौड़ीय भक्त जितने दिनों तक पुरी में रहे, महाप्रभु इसी प्रकार सदा उनके साथ आनन्द-विहार और कथा-कीर्तन करते रहे। |