श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- अर्जुन विजय आदि क्यों नहीं चाहते, इसका हेतु आगे के श्लोक में बताते हैं।
अर्थ- जिनके लिए हमारी राज्य, भोग और सुख की इच्छा है, वे ही सब अपने प्राणों की और धन की आशा का त्याग करके युद्ध में खड़े हैं। व्याख्या- ‘येषामर्थे कांक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च’- हम राज्य, सुख, भोग आदि जो कुछ चाहते हैं, उनको अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं चाहते, प्रत्युत इन कुटुम्बियों, प्रेमियों, मित्रों आदि के लिए ही चाहते हैं। आचार्यों, पिताओं, पितामहों, पुत्रों आदि को सुख-आराम पहुँचें, इनकी सेवा हो जाय, ये प्रसन्न रहें- इसके लिए ही हम युद्ध करके राज्य लेना चाहते हैं, भोग- सामग्री इकट्ठी करना चाहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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