श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- अब दुर्योधन पितामह भीष्म को प्रसन्न करने के लिए अपनी सेना के सभी महारथियों से कहता है। अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः । व्याख्या- ‘अयनेषु च सर्वेषु..... भवन्तः सर्व एव हि’- जिन-जिन मोर्चों पर आपकी नियुक्ति कर दी गई है, आप सभी योद्धा लोग उन्हीं मोर्चों पर दृढ़ता से स्थित रहते हुए सब तरफ से, सब प्रकार से भीष्म जी की रक्षा करें। भीष्म जी की सब ओर से रक्षा करें- यह कहकर दुर्योधन भीष्म जी को भीतर से अपने पक्ष में लाना चाहता है। ऐसा कहने का दूसरा भाव यह है कि जब भीष्म जी युद्ध करें, तब किसी भी व्यूह द्वार से शिखण्डी उनके सामने न आ जाए- इसका आप लोग खयाल रखें। अगर शिखण्डी उनके सामने आ जायगा, तो भीष्मजी उस पर शास्त्रास्त्र नहीं चलायेंगे। कारण कि शिखण्डी पहले जन्म में भी स्त्री था और इस जन्म में भी पहले स्त्री था, पीछे पुरुष बना है। इसलिए भीष्म जी इसको स्त्री ही समझते हैं और उन्होंने शिखण्डी से युद्ध न करे की प्रतिज्ञा कर रखी है। यह शिखण्डी शंकर के वरदान से भीष्म जी को मारने के लिए ही पैदा हुआ है। अतः जब शिखण्डी से भीष्म जी की रक्षा हो जायगी, तो फिर वे सबको मार देंगे, जिससे निश्चित ही हमारी विजय होगी। इस बात को लेकर दुर्योधन सभी महारथियों से भीष्म जी की रक्षा करने के लिए कह रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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