श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
1. किसी व्यापारी ने माल खरीदा तो उसमें मुनाफा हो गया। ऐसे ही किसी दूसरे व्यापारी ने माल खरीदा तो उसमें घाटा लग गया। इन दोनों में मुनाफा होना और घाटा लगना तो उनके शुभ-अशुभकर्मों से बने हुए प्रारब्ध के फल हैं; परंतु माल खरीदने में उनकी प्रवृत्ति स्वेच्छापूर्वक हुई है। 2. कोई सज्जन कहीं जा रहा था तो आगे आने वाली नदी में बाढ़ के प्रवाह के कारण एक धन का टोकरा बहकर आया और उस सज्जन ने उसे निकाल लिया। ऐसे ही कोई सज्जन कहीं जा रहा था तो उस पर वृक्ष की एक टहनी गिर पड़ी और उसको चोट लग गयी। उन दोनों में धन का मिलना और चोट लगना तो उसके शुभ-अशुभ कर्मों से बने हुए प्रारब्ध के फल हैं; परंतु धन का टोकरा मिलना और वृक्ष की टहनी गिरना- यह प्रवृत्ति अनिच्छा (दैवेच्छा) पूर्वक हुई है। 3. किसी धनी व्यक्ति ने किसी बच्चे को गोद ले लिया अर्थात उसको पुत्र-रूप में स्वीकार कर लिया, जिससे उसका सब धन उस बच्चे को मिल गया। ऐसे ही चोरों ने किसी का सब धन लूट लिया। इन दोनों में बच्चे को धन मिलना और चोरी में धन का चला जाना तो उनके शुभ-अशुभ कर्मों से बने हुए प्रारब्ध के फल हैं; परंतु गोद में जाना और चोरी होना- यह प्रवृत्ति परेच्छापूर्वक हुई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'प्रकर्षेण आरब्धः प्रारब्धः' अर्थात अच्छी तरह से फल देने के लिए जिसका आरंभ हो चुका है, वह ‘प्रारब्ध’ है।
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