श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
तेईसवें श्लोक में कहे लोगों को सिद्धि, सुख और परमगति नहीं मिलेगी अर्थात उनके नाममात्र के शुभकर्मों का पूरा फल नहीं मिलेगा। परंतु यहाँ कहे लोगों को तो नीच योनियों तथा नरकों की प्राप्ति होगी; क्योंकि इनमें दम्भ, अभिमान आदि हैं। वे शास्त्रों को मानते भी नहीं, सुनते भी नहीं और कोई सुनाना चाहे तो सुनना चाहते भी नहीं। सोलहवें अध्याय के तेईसवें श्लोक में शास्त्र का ‘उपेक्षा-पूर्वक’ त्याग है, इसी अध्याय के पहले श्लोक में शास्त्र का ‘अज्ञतापूर्वक’ त्याग है और यहाँ शास्त्र का ‘विरोधपूर्वक’ त्याग है। आगे तामस यज्ञादि में भी शास्त्र की उपेक्षा है। परंतु यहाँ श्रद्धा, शास्त्रविधि, प्राणिसमुदाय और भगवान- इन चारों के साथ विरोध है। ऐसा विरोध दूसरी जगह आए राजसी-तामसी वर्णन में नहीं है। संबंध- अगर कोई मनुष्य किसी प्रकार भी यजन न करे, तो उसकी श्रद्धा कैसे पहचानी जाएगी- इसे बताने के लिए भगवान आहार की रुचि से आहारी की निष्ठा की पहचान का प्रकरण आरंभ करते हैं। |
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