श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तदश अध्याय
उत्तर- यहाँ ‘ब्रह्मचर्यम्’ पद शरीर सम्बन्धी सब प्रकार के मैथुनों के त्याग और भलीभाँति वीर्य धारण करने का बोधक है। प्रश्न- ‘अहिंसा’ पद किसका वाचक है? उत्तर- शरीर द्वारा किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार से कभी जरा भी कष्ट न पहुँचाने का नाम ही यहाँ ‘अहिंसा’ है। प्रश्न- इन सबको ‘शारीरिक तप’ कहने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- उपर्युक्त क्रियाओं में शरीर की प्रधानता है अर्थात् इनसे शरीर का विशेष सम्बन्ध है और ये इन्द्रियों के सहित शरीर को उसके समस्त दोषों का नाश करके पवित्र बना देने वाली हैं, इसलिये इन सबको ‘शारीरिक तप’ कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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