श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगा: विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: ।
उत्तर- इस श्लोक में पिछले श्लोक में बतलाये हुए भक्तों से भिन्न उन समस्त साधारण लोगों के प्रवेश का वर्णन किया गया है, जो इच्छापूर्वक युद्ध करने के लिये आये थे; इसीलिये प्रज्वलित अग्नि और पतंगों का दृष्टान्त देकर अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि जैसे मोह में पड़े हुए पतंग को नष्ट होने के लिये ही इच्छापूर्वक बड़े वेग से उड़-उड़कर अग्नि में प्रवेश करते हैं, वैसे ही ये सब लोग भी आपके प्रभाव को न जानने के कारण मोह में पड़े हुए हैं और अपना नाश करने के लिये ही पतंगों की भाँति दौड़-दौड़कर आपके मुखों में प्रविष्ट हो रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |