श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजय: ।
उत्तर- ‘तत्’ पद ‘तत्पश्चात्’ का वाचक है। इसका प्रयोग करके यह भाव दिखलाया गया है कि अर्जुन ने जब भगवान् के उपर्युक्त अद्भुत प्रभावशाली रूप के दर्शन किये, तब उनमें इस प्रकार का परिर्वतन हो गया। प्रश्न- ‘धनंजयः’ के साथ ‘विस्मयाविष्टः’ और हृष्टरोमा’ इन दो विशेषणों के प्रयोग का क्या अभिप्राय है? उत्तर- बहुत-से राजाओं पर विजय प्राप्त करके अर्जुन ने धनसंग्रह किया था, इसलिये उनका एक नाम ‘धनंजय’ हो गया था। यहाँ उस ‘धनंजयः’ पद के साथ-साथ ‘विस्मयाविष्टः’ और ‘हृष्टरोमा’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग करके अर्जुन के हर्ष और आश्चर्य की अधिकता दिखलायी गयी है। अभिप्राय यह है कि भगवान् के उस रूप को देखकर अर्जुन को इतना महान् हर्ष और आश्चर्य हुआ, जिसके कारण उसी क्षण उनका समस्त शरीर पुलकित हो गया। उन्होंने इससे पूर्व भगवान् का ऐसा ऐश्वर्यपूर्ण स्वरूप कभी नहीं देखा था, इसलिये इस अलौकिक रूप को देखते ही उनके हृदयपट पर सहसा भगवान् के अपरिमित प्रभाव का कुछ अंश अंकित हो गया, भगवान् का कुछ प्रभाव उनकी समझ में आया। इससे उनके हर्ष और आश्चर्य की सीमा न रही। प्रश्न- ‘देवम्’ पद किसका वाचक है तथा ‘शिरसा प्रणम्य’ और ‘कृतान्जलिः’ का क्या भाव है? उत्तर- यहाँ ‘देवम्’ पद भगवान् के तेजोमय विराट्स्वरूप का वाचक है। और ‘शिरसा प्रणम्य’ तथा ‘कृतान्जलिः’ इन दोनों पदों का प्रयोग करके यह भाव दिखलाया गया है कि अर्जुन ने जब भगवान् का ऐसा अनन्त आश्चर्यमय दृश्यों से युक्त परम प्रकाशमय और असीम ऐश्वर्यसमन्वित महान् स्वरूप देखा तब उससे वे इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में जो पूर्व-जीवन की मित्रता का एक भाव था, वह सहसा विलुप्त-सा हो गया; भगवान् की महिमा के सामने वे अपने को अत्यन्त तुच्छ समझने लगे। भगवान् के प्रति उनके हृदय में अत्यन्त पूज्यभाव जाग्रत् हो गया और उस पूज्यभाव के प्रवाह ने बिजली की तरह गति उत्पन्न करके उनके मस्तक को उसी क्षण भगवान् के चरणों में टिका दिया और वे हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्रभाव से श्रद्धाभक्तिपूर्वक भगवान् का स्तवन करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज