दशम अध्याय
प्रश्न- ‘भास्वता’ विशेषण के सहित ‘ज्ञानदीपेन’ पद किसका वाचक है और उसके द्वारा ‘अज्ञानजनित अन्धकार का नाश करना’ क्या है?
उत्तर- पूर्व श्लोक में जिसे बुद्धियोग कहा गया है; जिसके द्वारा प्रभाव और महिमा आदि के सहित निर्गुण-निराकारतत्त्व का तथा लीला, रहस्य, महत्त्व और प्रभाव आदि के सहित सगुण-निराकार और साकारतत्त्व का स्वरूप भलीभाँति जाना जाता है; जिसे सातवें और नवें अध्याय में विज्ञानसहित ज्ञान के नाम से कहा है- ऐसे संशय विपर्यय आदि दोषों से रहित ‘दिव्य बोध’ का वाचक यहाँ ‘भास्वता’ विशेषण के सहित ‘ज्ञानदीपेन’ पद है। उसके द्वारा भक्तों के अन्तःकरण में भगवत्तत्त्वज्ञान के प्रतिबन्धक आवरण-दोष का सर्वथा अभाव कर देना ही ‘अज्ञानजनित अन्धकार का नाश करना’ है।
प्रश्न- इस ज्ञानदीप (बुद्धियोग) के द्वारा पहले अज्ञान का नाश होता है या भगवान् की प्राप्ति होती है?
उत्तर- ‘ज्ञानदीप’ के द्वारा यद्यपि अज्ञान का नाश और भगवान् की प्राप्ति-दोनों एक ही साथ हो जाते हैं, तथापि यदि पूर्वा पर का विभाग किया जाय तो यही समझना चाहिये कि पहले अज्ञान का नाश होता है और फिर उसी क्षण भगवान् की प्राप्ति भी हो जाती है।
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