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सप्तम अध्याय
प्रश्न- ‘तत्’ विशेषण के सहित ‘ब्रह्म’ पद किसका वाचक हैॽ ‘कृत्स्न’ विशेषण के सहित ‘अध्यात्म’ पद किसका वाचक है? और ‘अखिल’ विशेषण के सहित ‘कर्म’ पद किसका वाचक है? एवं उन बको जानना क्या है?
उत्तर- ‘तत्’ विशेषण के सहित ‘ब्रह्म’ पद से निगुर्ण, निराकार सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा का निर्देश है। उक्त परब्रह्म परमात्मा के तत्त्व को भली-भाँति अनुभव करके उसे साक्षात् कर लेना ही उसको जानना है। इस अध्याय में जिस तत्त्व का भगवान् ने ‘परा प्रकृति’ के नाम से वर्णन किया है एवं पंद्रहवें अध्याय में जिसे ‘अक्षर’ कहा गया है, उस समस्त ‘जीवसमुदाय’ का वाचक ‘कृत्स्न’ विशेषण के सहित ‘अध्यात्म’ पद है। और एक सच्चिदानन्दघन परमात्मा ही जीवों के रूप में अनेकाकार दीख रहे हैं। वास्तव में जीवसमुदायरूप सम्पूर्ण ‘अध्यात्म’ सच्चिदानन्दघन परमात्मा से भिन्न नहीं है, इस तत्त्व को जान लेना ही उसे जानना है; एवं जिससे समस्त भूतों की और सम्पूर्ण चेष्टाओं की उत्पत्ति होती है, भगवान् के उस आदि संकल्परूप ‘विसर्ग’ का नाम ‘कर्म’ है (इसका विशेष विवेचन आठवें अध्याय के तीसरे श्लोक की व्याख्या में किया गया है) तथा भगवान् का संकल्प होने से यह कर्म भगवान् से अभिन्न ही है, इस प्रकार जानना ही ‘अखिल कर्म’ को जानना है।
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