श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तम अध्याय
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
उत्तर- स्थावर और जंगम यानी अचर और चर जितने भी छोटे-बड़े सजीव प्राणी हैं, यहाँ ‘भूतानि’ पद उन सभी का वाचक है। समस्त सजीव प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति और वृद्धि इन ‘अपरा’ (जड़) और ‘परा’ (चेतन) प्रकृतियों के संयोग से ही होती हैं। इसलिये उनकी उत्पत्ति में ये ही दोनों कारण हैं। यही बात तेरहवें अध्याय के छब्बीसवें श्लोक में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के नाम से कही गयी है। प्रश्न- ‘सम्पूर्ण जगत्’ किसका वाचक है? तथा भगवान ने जो अपने को उसका प्रभव और प्रलय बतलाया है, इसका क्या अभिप्राय है? उत्तर- इस जड़-चेतन और चराचर समस्त विश्व का वाचक ‘जगत्’ शब्द है; इसकी उत्पत्ति स्थिति और प्रलय भगवान् से ही और भगवान् में ही होते हैं। जैसे बादल आकाश से उत्पन्न होते हैं, आकाश में रहते हैं और आकाश में ही विलीन हो जाते हैं तथा आकाश ही उनका एकमात्र कारण और आधार है, वैसे ही यह सारा विश्व भगवान् से ही उत्पन्न होता है, भगवान् में ही स्थित है और भगवान् में ही विलीन हो जाता है। भगवान् ही इसके एकमात्र महान् कारण और परम आधार हैं। इसी बात को नवें अध्याय के चौथे, पाँचवें और छठे श्लोकों में भी स्पष्ट किया गया है। यहाँ यह बात याद रखनी चाहिये कि भगवान् आकाश की भाँति जड़ या विकारी नहीं हैं। दृष्टान्त तो केवल समझाने के लिये हुआ करते हैं। वस्तुतः भगवान् का इस जगत् के रूप में प्रकट होना उनकी लीलामात्र है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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