श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
षष्ठ अध्याय
उत्तर- दोनों की आवश्यकता है। ‘अभ्यास’ चित्त नदी की धारा को भगवान् की ओर ले जाने वाला सुन्दर मार्ग है और ‘वैराग्य’ उसकी विषयाभिमुखी गति को रोकने वाला बाँध है। परंतु यह स्मरण रखना चाहिये कि ये दोनों एक-दूसरे के सहायक हैं। अभ्यास से वैराग्य बढ़ता है और वैराग्य से अभ्यास की वृद्धि होती है। अतएव एक का भी अच्छी तरह आश्रय लेने से मन वश में हो सकता है। प्रश्न- यहाँ अर्जुन को ‘महाबाहो’ सम्बोधन किस लिये दिया गया है? उत्तर- अर्जुन विश्वविख्यात वीर थे। देव, दानव और मनुष्य- सभी श्रेणियों के महान् योद्धाओं को अर्जुन ने अपने बाहुबल से परास्त किया था। यहाँ भगवान् उनको इस वीरता का स्मरण कराकर मानो उत्साहित कर रहे हैं कि ‘तुम्हारे जैसे अतुल पराक्रमी वीर के लिये मन को इतना बलवान् मानकर उससे डरना और उत्साह छोड़ना उचित नहीं है। साहस करो, तुम उसे जीत सकते हो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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