श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
षष्ठ अध्याय
उनमें से कुछ ये हैं -
इनके अतिरिक्त और भी अनेकों प्रकार हैं। परंतु इतना स्मरण रखना चाहिये कि अभ्यास तभी सफल होगा, जब वह अत्यन्त आदर-बुद्धि से, श्रद्धा और विश्वासपूर्वक बिना विराम के लगातार और लंबे समय तक किया जायगा।[3] आज एक साधन में मन लगाने की चेष्टा की, कल दूसरा किया, कुछ दिन बाद और कुछ करने लगे, कहीं भी विश्वास नहीं जमाया; आज किया, कल नहीं, दो-चार दिन बाद फिर किया, फिर छोड़ दिया; अथवा कुछ समय करने के बाद जी ऊब गया, धीरज जाता रहा और उसे त्याग दिया। इस प्रकार के अभ्यास से सफलता नहीं मिलती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6। 26
- ↑ 13। 25
- ↑ ‘स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः।’ (योगदर्शन 1। 14)
‘किंतु वह अभ्यास लंबे समय तक, निरन्तर तथा सत्कारपूर्वक सेवन करने से ढृढ़भूमि होता है।’
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