श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
षष्ठ अध्याय
उत्तर- ध्यानयोग के साधन में निद्रा, आलस्य, विक्षेप एवं शीतोष्णादि द्वन्द्व विघ्न माने गये हैं। इन दोषों से बचने का यह बहुत ही अच्छा उपाय है। काया, सिर और गले को सीधा तथा नेत्रों को खुला रखने से आलस्य और निद्रा का आक्रमण नहीं हो सकता। नाक की नोंक पर दृष्टि लगाकर इधर-उधर अन्य वस्तुओं को न देखने से बाह्य विक्षेपों की सम्भावना नहीं रहती और आसन के दृढ़ हो जाने से शीतोष्णादि द्वन्द्वों से भी बाधा होने का भय नहीं रहता। इसलिये ध्यानयोग का साधन करते समय इस प्रकार आसान लगाकर बैठना बहुत ही उपयोगी है। इसीलिये भगवान् ने ऐसा कहा है। प्रश्न- इन तीनों श्लोकों में जो आसन की विधि बतलायी गयी है, वह सगुण परमेश्वर के ध्यान के लिये है या निर्गुण ब्रह्म के? उत्तर- ध्यान सगुण का हो या निर्गुण ब्रह्म का, वह तो रुचि और अधिकार-भेद की बात है। आसन की यह विधि तो सभी के लिये आवश्यक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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