श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- जो रात-दिन शोक करता रहता है, जिसकी चिंताओं का कभी अन्त नहीं आता[1]-ऐसे चिंतापरायण पुरुष को ‘विषादी’ कहते हैं। प्रश्न- ‘दीर्घसूत्री’ किसको कहते हैं? उत्तर- जो किसी कार्य का आरम्भ करके बहुत काल तक उसे पूरा नहीं करता-आज कर लेंगे, कल कर लेंगे, इस प्रकार विचार करते-करते एक रोज में हो जाने वाले कार्य के लिये बहुत समय निकाल देता है और फिर भी उसे पूरा नहीं कर पाता-ऐसे शिथिल प्रकृति वाले मनुष्य को ‘दीर्घसूत्री’ कहते हैं। प्रश्न- वह कर्ता तामस कहा जाता है, इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- इससे यह भाव दिखलाया गया है कि उपर्युक्त विशेषणों में बतलाये हुए सभी अवगुण तमोगुण के कार्य हैं; अतः जिस पुरुष में उपर्युक्त समस्त लक्षण घटते हों या उनमें से कितने ही लक्षण घटते हों उसे तामस कर्ता समझना चाहिये। तामसी मनुष्य की अधोगति होती है[2]; वे नाना प्रकार की पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि नीच योनियों में उत्पन्न होते हैं[3]- अतः कल्याण चाहने वाले मनुष्य को अपने में तामसी कर्ता के लक्षणों का कोई भी अंश न रहने देना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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