श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तम अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भागवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योशाशास्त्र भीमद्भागवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवादमें ‘ज्ञानविज्ञान योग’ नामक सातवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।।7।। इस सातवें अध्याय में ज्ञान और विज्ञान का वर्णन किया गया है। भगवान इस संपूर्ण जगत के महाकारण हैं- ऐसा दृढ़तापूर्वक मानना ‘ज्ञान’ है। ऐसे ही भगवान के सिवाय कुछ भी नहीं है- ऐसा अनुभव हो जाना ‘विज्ञान’ है। ज्ञान और विज्ञान से परमात्मा के साथ नित्ययोग का अनुभव हो जाता है अर्थात ‘मैं भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं’ इस परम प्रेमरूप नित्य-संबंध की जागृति हो जाती है। इसलिए इस सातवें अध्याय का नाम ‘ज्ञानविज्ञान योग’ रखा गया है।
इस अध्याय के तीस श्लोकों में से- छठे श्लोक के तृतीय चरण में और चौदहवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुलाः’; ग्यारहवें श्लोक के तृतीय चरण में और पचीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; सत्रहवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; तथा उन्नीसवें और बीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष तेईस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छंद के लक्षणों से युक्त हैं। |
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