श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय
अर्थ- हे जनार्दन ! जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, उन मनुष्यों का बहुत काल तक नरकों में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं। व्याख्या- ‘उत्सन्नकुलधर्माणाम्......अनुशुश्रुम[1]’- भगवान ने मनुष्य को विवेक दिया है, नया कर्म करने का अधिकार दिया है। अतः यह कर्म करने में अथवा न करने में, अच्छा करने में अथवा मंदा करने में स्वतंत्र है। इसलिए इसको सदा विवेक-विचारपूर्वक कर्तव्य-कर्म करने चहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शोकाविष्ट होनेके कारण ही अर्जुन ने यहाँ ‘अनुशुश्रुम’ परोक्ष लिटूकी क्रिया प्रयोग किया है।
- ↑ पितरों
- ↑ वंश
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज