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- सकट साजि सब ग्वाकल चले -सूरदास
- सकट साजि सब ग्वाल चले -सूरदास
- सकल तजि, भजि मन चरन मुरारि -सूरदास
- सकल निसि जागे के से नैन -सूरदास
- सकल सदगुन नित करत -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सकल साधनों की फलरूपा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन
- सकुच छाँड़ि अब इनहि जनाऊँ -सूरदास
- सकुच छाँड़ि अब इनहिं जनाऊँ -सूरदास
- सकुच सहित घर कौं गई -सूरदास
- सकुचत गए घर कौं स्याम -सूरदास
- सकुचत स्याम कहत मृदु बानी -सूरदास
- सकुचत स्याम कहत मृदु वानी -सूरदास
- सकुचन कहि न सकति काहू सौं -सूरदास
- सकुचि तन उदधिसुता मुसुकानी -सूरदास
- सकुचि मन परस्पर बसन लीन्हे -सूरदास
- सकुचित कहत नहीं महाराज -सूरदास
- सकुञ्च भरे अधखिले सुमन में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सकृद्ग्रह
- सकृष्ण स्तोक
- सखनि सँग खेलत दोऊ भैया -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखा
- सखा कहत हैं स्याम खिसाने -सूरदास
- सखा कहन लागे हरि सौं तब -सूरदास
- सखा तिहारे हितू हमारे -सूरदास
- सखा सत्कार
- सखा सत्कार 2
- सखा सहित गए माखन चोरी -सूरदास
- सखा सुनि एक मेरी बात -सूरदास
- सखि! सुख-दान करो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखि इक गई मानिनि पास -सूरदास
- सखि कर धनु लै -सूरदास
- सखि कर धनु लै चंद्रहि मारि -सूरदास
- सखि कोउ नई बात -सूरदास
- सखि कोउ नई बात सुनि आई -सूरदास
- सखि मिलि करौ कछुक उपाउ -सूरदास
- सखि मोहिं हरि-दरस-रस प्याइ -सूरदास
- सखि री, काहैं गहरू लगावति -सूरदास
- सखि री, नंद-नंदन देखु -सूरदास
- सखि री काहैं गहरू लगावति -सूरदास
- सखि री बिरह यह -सूरदास
- सखि री बिरह यह बिपरीति -सूरदास
- सखि सोभा अनुपम अति राजै -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 2 -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 3 -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 4 -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 5 -सूरदास
- सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 6 -सूरदास
- सखिनि सिखर चढ़ि टेर सुनायौ -सूरदास
- सखियन मिलि राधा घर लाईं -सूरदास
- सखियनि के सँग कुँवरि राधिका -सूरदास
- सखियनि बीच नागरी आवै -सूरदास
- सखियनि यहै बिचारि परयौ -सूरदास
- सखियनि सँग लै राधिका -सूरदास
- सखियनि संग तहाँ गई -सूरदास
- सखियों सहित देवयानी और शर्मिष्ठा का वन-विहार
- सखियों सहित देवयानी और शर्मिष्ठा वन-विहार
- सखी! न कोई और जगत् में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी! माय कारौ नाग डस्यौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी! मैं भई अति असहाय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी! यह कैसी भूल भई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी! वह कैसौ मीठौ सपनौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी, म्हारो कानूड़ो कलेजे की कोर -मीराँबाई
- सखी अपणाँ स्याँम खोटा -मीराँबाई
- सखी इन नैनति तै घन हारे -सूरदास
- सखी इन नैननि तैं घन हारे -सूरदास
- सखी कहति तु बात गँवारी -सूरदास
- सखी कोटिभि गोपिकाभि सहवटे राधिकाअराधन
- सखी गई कहि लेउ मनाई -सूरदास
- सखी गई हरि कौ सुख दै -सूरदास
- सखी गई हरि कौं सुख दै -सूरदास
- सखी तू राधेहिं दोष लगावति -सूरदास
- सखी तैने नैना गमाय दिया रोय -मीराँबाई
- सखी निरखि अँग अंग स्याम के -सूरदास
- सखी ने आकर बात कही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी पर होइँ तौ उड़ि जाउँ -सूरदास
- सखी मध्यग
- सखी मेरी नींद नसानी हो -मीराँबाई
- सखी मेरे लोचन लोभ भरे -सूरदास
- सखी मैं सुनी बात इक आज -सूरदास
- सखी मोहि मोहनलाल मिलावै -सूरदास
- सखी मोहिं मोहनलाल मिलावै -सूरदास
- सखी मोहिं हरि दरस कौ चाउ -सूरदास
- सखी मोहिं हरि दरस कौं चाउ -सूरदास
- सखी मोहे लाज बैरन भई -मीराँबाई
- सखी यह बात तुम कही साँची -सूरदास
- सखी रही राधामुख हेरि -सूरदास
- सखी री! मो सम कौन कठोर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सखी री, काके मीत अहीर -सूरदास
- सखी री, कौन तिहारे जात -सूरदास
- सखी री, चातक मोहि -सूरदास
- सखी री, मुरली लीजै चोरि -सूरदास
- सखी री और सुनहु इक बात -सूरदास
- सखी री कठिन मानगढ़ टूट्यौ -सूरदास
- सखी री काहे रहति मलीन -सूरदास
- सखी री चातक मोहि -सूरदास
- सखी री चातक मोहिं जियावत -सूरदास
- सखी री दिखरावहु वह देस -सूरदास
- सखी री पावस -सूरदास
- सखी री पावस सैन चलान्यौ -सूरदास
- सखी री पूरनता हम जानी -सूरदास
- सखी री बूँद अचानक -सूरदास
- सखी री बूँद अचानक लागी -सूरदास
- सखी री मथुरा मैं द्वै हंस -सूरदास
- सखी री माधोहिं दोष न दीजै -सूरदास
- सखी री मुरली भई पटरानी -सूरदास
- सखी री मेरी नींद नसानी हो -मीराँबाई
- सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती -मीराँबाई
- सखी री मो मन धोखै जात -सूरदास
- सखी री वह देखौ रथ जात -सूरदास
- सखी री सावन दूलह आयौ -सूरदास
- सखी री सुन्दरता कौ रंग -सूरदास
- सखी री स्याम सबै इक सार -सूरदास
- सखी री स्याम सौं मन मान्यौ -सूरदास
- सखी री स्याम सौं मन मान्यौभ -सूरदास
- सखी री हरि आवहिं किहिं हेत -सूरदास
- सखी री हरि बिनु है दुख भारी -सूरदास
- सखी री हरिहिं दोष जनि देहु -सूरदास
- सखी री हौ गोपालहिं लागी -सूरदास
- सखी री हौं गोपालहिं लागी -सूरदास
- सखी वह गई हरि पैं धाइ -सूरदास
- सखी संप्रदाय
- सखी सखी सौ धन्य कहैं -सूरदास
- सखी सखी सौं धन्य कहैं -सूरदास
- सखी सबै मिलि कान्ह निहारौ -सूरदास
- सखी सम्प्रदाय
- सखीकोटिभिर्वर्तमान
- सखीबन्धनान्मोचिताक्रूर
- सखीभाव संप्रदाय
- सखीभाव सम्प्रदाय
- सखीमोहदावाग्निहा
- सखीराधिकादुखनाशी
- सखीरी लाज वेरण भई -मीराँबाई
- सखूबाई
- सखो सबै मिलि कान्हम निहारौ -सूरदास
- सखनि संग जेंवत हरि छाक -सूरदास
- सगर
- सगर की संतान प्राप्ति के लिए तपस्या
- सगोत्र
- सगोप्ता
- सघन कल्पतरु-तर मनमोहन -सूरदास
- सघन कुंज तै उठे भोरही -सूरदास
- सघन कुंज तैं उठे भोरहीं -सूरदास
- सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि -कृष्णदास
- सच कहते हो, उद्धव ! तुम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सचित्त
- सच्चिदान्नदघन परमात्मा, दश्यवर्ग प्रकृति और पुरुष उन चारों के ज्ञान से मुक्ति का वर्णन
- सजन बेगा घर अइए हो -मीराँबाई
- सजन सुध ज्यों जानों त्यों लीज्यो -मीराँबाई
- सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो -मीराँबाई
- सजन सुध ज्यूं जाणे त्यूं लीजै हो -मीराँबाई
- सजनी अब हम समुझि परि -सूरदास
- सजनी कत यह बात दुरैहौं -सूरदास
- सजनी नख सिख तैं हरि खोटे -सूरदास
- सजनी निरखि हरि कौ रूप -सूरदास
- सजनी नैना गए भगाइ -सूरदास
- सजनी मनहिं अकाज कियौ -सूरदास
- सजनी मोतै नैन गए -सूरदास
- सजनी मोतैं नैन गए -सूरदास
- सजनी येई हैं गोपाल गुसाईं -सूरदास
- सजनी स्याम सदाई ऐसे -सूरदास
- सजल-जलद-नीलाभ तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सजल-जलद-नीलाभ श्याम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सजल-जलद-नीलाभ श्याम तन परम मनोहर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सजातीय
- सजि श्रृंगार चलीं ब्रजनारी -सूरदास
- सजौ मान क्यौ मन न हाथ -सूरदास
- सजौं मान क्यौं, मन न हाथ -सूरदास
- सजौं मान क्यौं,मन न हाथ -सूरदास
- सज्जनों के चरित्र के विषय में महर्षि और कुत्ते की कथा
- सञ्चालकुंड
- सञ्चालकुण्ड
- सणु
- सत गुण
- सत गुर म्हाँरी प्रीत निभाज्यो जी -मीराँबाई
- सत युग
- सतगुर म्हारा प्रीत निभाज्यो जी -मीराँबाई
- सतत
- सतयुग
- सतर होति काहे की माई -सूरदास
- सतलज नदी
- सतलुज नदी
- सतार्क्ष्य
- सती
- सती (दुर्गा)
- सती (बहुविकल्पी)
- सती हियैं धरि सिव कौ ध्यान -सूरदास
- सतीमोहन
- सतीराधिकाबोधद
- सतुगुरु चरन भजे बिनु विद्या -सूरदास
- सतो गुण
- सत्कृति
- सत्त गुण
- सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन
- सत्त्व आदि गुणों का और प्रकृति के नामों का वर्णन
- सत्त्व गुण
- सत्त्व गुणों का वर्णन
- सत्त्वगुण के कार्य का वर्णन और उसके जानने का फल
- सत्पुरुषों का संग्रह व कोष की देखभाल के लिए राजा को प्रेरणा देना
- सत्य
- सत्य-असत्य का विवेचन
- सत्य (ऋषि)
- सत्य (कृष्ण)
- सत्य (निश्चयवन पुत्र)
- सत्य (बहुविकल्पी)
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- सत्य (महाभारत संदर्भ)
- सत्य (वितत्य पुत्र)
- सत्य का पालन करो (महाभारत संदर्भ)
- सत्य का फल (महाभारत संदर्भ)
- सत्य की परिभाषा (महाभारत संदर्भ)
- सत्य की महिमा, असत्य के दोष व लोक और परलोक के सुख-दु:ख का विवेचन
- सत्य की महिमा (महाभारत संदर्भ)
- सत्य की महिमा तथा जापक की गति का वर्णन
- सत्य के लक्षण, स्वरूप और महिमा का वर्णन
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- सत्यक (बहुविकल्पी)
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