सखी इन नैननि तैं घन हारे ।
बिनहीं रितु बरषत निसि बासर, सदा मलिन दोउ तारे ॥
ऊरध स्वास समीर तेज अति, सुख अनेक द्रुम डारे ।
बदन सदन करि बसे बचन खग, दुख पावस के मारे ॥
दुरि दुरि बूँद परत कंचुकि पर, मिलि अंजन सौं कारे ।
मानौ परनकुटी सिव कीन्ही, बिबि मूरति धरि न्यारे ॥
घुमरि घुमरि बरषत जल छाँड़त, डर लागत अँधियारे ।
वूड़ते ब्रजहि 'सूर' को राखे बिनु गिरिवरधर प्यारे ॥3234॥