सखी निरखि अँग अंग स्याम के।
कहुँ चंदन, कहुँ बदनरेखा, कहुँ काजर छवि लखति बाम के।।
आलस भरे नैन रतनारे, चतुर-नारि-सँग जगे जाम के।
अपनै मन यह सोच करत हरि, परी तियाफँग कठिन ताम के।।
मान कियौ मो तन फिरि बैठी, आए है यह सुनत नाम के।
'सूर' स्याम इक बुद्धि बिचारी, मनमोहन रति सहित काम के।।2717।।