सखी री मुरली भई पटरानी।
अधर सदा सुख करति स्याम कैं धुधा पियति इतरानी।।
मोहे पसु पंछी द्रुम बोली, जमुना उलटि बहानी।
सुर-नर-मुनि बस भए नाद कैं सबै बस्य मन ध्यानी।।
तिहुँ भुवन मैं चली बड़ाई, अस्तुति मु्ख-मुख गानी।
सूर स्याम की अब अर्धंगिनी, रही झार लपटानी।।1328।।