सखी री पूरनता हम जानी।
याहीं तै अनुमान करति है, पटपद से अगवानी।।
प्रथमहि गाइ ग्वाल सँग रहते, भए छाँछ के बानी।
अब तौ राजनीति सुनियत है, कुबिजा सी पटरानी।।
मन हरि लियौ वजाइ वाँसुरी, अब ह्वै बैठे ज्ञानी।
महा मल्ल मारत मन मोहन, काहे न संका आनी।।
अर्ध निसा व्रजनारि संग लै, बन बसि लीला ठानी।
‘सूरदास’ ये कलपति वनिता, कहैं कौन अब मानी।।4039।।