सखिनि संग बृषभानुकिसोरी 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
दूसरी गुरु मानलीला


प्यारी निकट गई सब आली। ठाढे पौरि रहे बनमाली।।
कहतिं मान कीन्हौ तै प्यारी। न्हान जान तै फिरी कहा री।।
तोहिं लखत ही री गिरधारी। अतिहिं डरे तन सुरति बिसारी।।
मुरछि परे धरनी अकुलाई। तरु तमाल जनु गयौ झुराई।।
तै ऐसै चितयौ कछु बिनकौ। नैकुहुँ चैन रह्यौ नहिं तिनकौ।।
तेरे नैन अरी अनियारे। किधौ बान खरसान सँवारे।।
भौंह कमान तानि जौ मारे। क्यौ करि राखै प्रान पियारे।।
घायल जिमि मूर्च्छित गिरिधारी। अमी बचन अब सीचि पियारी।।
बहुनायक वै तू नहिं जानै। तिनसौ कहा इतौ दुख मानै।।
बाहँ गहै हरि कौ ढिग ल्यावै। अब वै निज अपराध छमावै।।
गहति बाहँ तुमही किन जाई। मोसौ बाहँ गहावन आई।।
काल्हिहि सौह मोहिं उनि दीनी। आजुहिं यह करनी पुनि कीनी।।
देखि चुकी उनके गुननि, निज नैननि सुख पाइ।
तिन्है मिलावति मोहिं अब, बाहँ गहावति आइ।।
मिलौ न तिनसौ भूल, अब जौलौ जीवन जियौ।
सहौ बिरह कौ सूल, बरु ताकी ज्वाला जरौ।।

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