सखी री मेरी नींद नसानी हो। (टेक)
पिया को पन्थ निहारतें, सब रैन बिहानी हो।।1।।
सखियन मिल के सीख दई, मन एक न मानी हो।।2।।
बिन देखै कल ना पड़ै, जिय ऐसी ठानी हो।।3।।
अंग क्षाण ब्याकुल भई, मुख पिय पिय वानी हो।।4।।
अन्तर वेदन विरह की, वह पीय न जानी हो।।5।।
ज्यों चातक घन को रटै, महरा जिमि पानी हो।।6।।
मीराँ ब्याकुल रहिनी, सुध बुध बिसरानी हो।।7।।[1]
राग - विहाग : ताल - कहरवा (विरह)
टीका टिप्पणी और संदर्भ
↑बिहारी = व्यतीत की. बिसरानी = भूल गई. महरा = एक पक्षी, कहार, गूजर, अहीर