पिरथिवी मायाजाल मैं पड़ी।
तूँ तो समझि सुहागण सुरता नारि पलक मेरी रामसूँ लगी। (टेर)
लगती लहँगो पहरि सुहागण, बीतौ जाइ विव्हार।
धन जोबन दिन च्यार का, जात न लागै बार।।1।।
रामनाम को चुड़लो पहरौं, सुमरण काजल सार।
माला ल्यौ हरिनाँव की, उतरि चलौ पैली पार।।2।।
ऐसा बर कौं काई बराँजी, जनमत ही मर जाय।
बर बरस्याँ, म्हारो साँवरोजी, अमर चूड़ा होइ जाय।।3।।
जनमैं मरैं करैं घर केता, बिष राता नरनारि।
मीराँ राती रामसूँ जी, साँवरियो भरतार।।4।।[1]
राग - माड वा मारू : ताल - दादरा
(चेतावनी)