सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती। (टेक)
पचरँग मेरा चोला रँगा दे, मैं झुरमुट खेलन जाती।।1।।
झुरमुट में मेरा साँई मिलेगा, घोल अडम्बर पाती।।2।।
चन्दा जायगा, सूरज जायगा, जायगा धरण अकासी।।3।।
पवन पानी दोनों ही जायँगे, अटल रहे अविनासी।।4।।
सुरत निरत का दिवला सँजो ले, मनसा की करि बाती।।5।।
प्रेम हरी का तेल बना ले, जगा करे दिन राती।।6।।
जिनके पिय परदेश बसत हैं, लिखि लिखि भेजें पाती।।7।।
मेरे पिया मो माहिं बसत हैं, कहूँ न आती जाती।।8।।
पीहर बसूँ न सास घर, सतगुरु शब्द सँगाती।।9।।
ना घर मेरा ना घर तेरा, मीराँ हरि रँग राती।।10।।[1]
राग - आसावरी : ताल - दीपचन्दी
(प्रेम)