मैं तौ सुमर्या छे मदनगोपाल, राणाँजी म्हारो काँई करसी। (टेक)
मीराँ बैठ्या महल में जी, छापा तिलक लगाय।
आया राणाँजी महल में जी, कोप कर्यो छै मन माँय।।1।।
मीराँ महलाँ सें ऊतरया जी, ऊँटाँ भार कसाय।
डावो छोड्यो मेड़तो, कोई सूदा द्वारका जाय।।2।।
राणाँजी साँड्यो भेजियो जी, पाछा लावो मोड़।
घर की नार इस्तरी चाली (छै) मुड़ राठोड़।।3।।
लाजै पीहर सासरो जी, लाजै माय‘र बाप।
लाजै दूदाजी रो मेड़तो जी, कोई चोथी गढ़ चीतोड़।।4।।
त्यारूँ पीहर सासरो जी, त्यारूँ माय‘र बाप।
त्यारूँ दूदाजी रो मेड़तो, कोई चोथी गढ़ चीतोड़।।5।।
(राणाँजी) विष का प्याला भेजिया जी, द्यो मीराँ के हाथ।
कर चरणामृत पी गया जी, आप जानो दीनानाथ।।6।।
पेयाँ नाग छोड़िया जी, छोड़ो मीराँ के महल।
हिवड़े हार हिंडालिया, कोई तुम जानो रघुनाथ।।7।।[1]
राग - सारंग : ताल - कहरवा
(प्रेम-दृढ़ता)