एरी मैं खड़ी निहारूँ बाट,
चितवन चोट कलेजे बह गई, सुन्दर स्याम सु घाट। (टेर)
मथुरा में कुबज्या कर राखी, म्हाजन की-सी हाट।
केसर चन्दन लेपन कीन्हो, मोहन तिलक लिलाट।।1।।
हमरा पिलँग जड़ाऊ छोड्या, बणिया (रेसम) पीली पाट।
क्याँ पर राजी भयो साँवरो, चेरी के नहिं खाट।।2।।
अजहुँ न आयो कँवर नन्द को, क्याँरी लागी चाट।
छाँड गयो मझधार साँवरो, बिना अकल को जाट।।3।।
आप बिना गोपिन सब ब्रज की, ब्याकुल भई निराट।
मीराँ के प्रभु दरसण दीज्यो, करज्यो आनँद ठाट।।4।।[1]
राग - सोरठ (मल्हार) : ताल - कहरवा
(विरह तथा प्रेम)