पिया मोहि दरसण दीजै हो।
बेर बेर मैं टेरत टेरत हूँ, अहे कृपा (किरपा) कीजे हो। (टेर)
जेठ महीने जल बिना, पंछी दुख होई हो।
मोर असाढ़ा कुरलहे, घन चात्रक सोई हो।।1।।
सावण में झड़ लागियौ, सखि तीजाँ खेलै हो।
भादरवै नदियाँ बहै, दूरी जिन मेलै हो।।2।।
सीप स्वाति ही झेलती, आसोजाँ सोई हो।
देव काती में पूजहे, मेरे तुम होई हो।।3।।
मंगसर ठंढ बहोत पड़ै, मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणाँ, अबही तुम न्हालो हो।।4।।
माह महीं बसन्त पंचमी, फागाँ सब गावै हो।
फागुण फागाँ खेल हैं, वणराइ जरावै हो।।5।।
चैत चित्त में ऊपजी, दरसण तुम दीजै हो।
वैसाख वणराइ फूलवै, कोइल कुरलीजै हो।।6।।
काग उडावत दिन गया, बूझूँ पिण्डत जोसी हो।
मीराँ बिरहणि ब्याकुली, दरसण कब होसी हो।।7।।[1]
राग - कालिंगड़ा : ताल - कहरवा
(बारहमासिया विरह)