रमस्याँ सादूड़ाँ री लार, यो तो मन लाग्यौ वैराग में। (टेक)
रमती जोयो मीराँ काँकरो, सेवा सालगराम।
धूप दीप ले मैं पूजती, यो बर म्हारो सरदार।।1।।
सादूड़ा तो आया मीराँ बाग में, कानाँ सुणी छै अवाज।
आयोड़ा सादाँ नै दीज्यौ बैसणो, पंखा पवन डुलाय।।2।।
लिख रे पत्र राणे भेजियो, दीजो मेड़तणी रे हात।
सादूड़ाँ रो सँग राणी छोड़ द्यो, करो नी उदियापुर रो राज।।3।।
लिख रे पत्र मीराँ भेजियो, दीज्यो मेवाड़याँ रे हात।
सादूड़ाँ रो सँग राणा ना छुटै, काँई कराँला थारो राज।।4।।
सिघ पकड़ राणो जुड़ दियो, मीराँ सेवा करबा जाय।
खोल किंवाड़ी मीराँ देखियो, हो गया निरसँघ ओतार।।5।।
बिड़द छाँडू तो लाजै मेड़तो, लाजै राणूँ सिरदार (साथ)।
मीराँ तो दासी थारी जनम की, थे जाणँ दीनानाथ।।6।।[1]
राग - बरवा वा सोरठ : ताल - तिताला ठाह
(चरित और दृढ़ता)