कुण बाँचै पाती, बिना प्रभु कुण बाँचै पाती। (टेर)
कागद ले ऊधोजी आये, कहाँ रहे साथी।
आवत जावत पाँव घिसा रे, (बाला) अँखियाँ भइ राती।।1।।
कागद ले राधा बाँचण बैठी, भर आई छाती।
नैन नीरज में अम्ब बहै रे, (बाला) गंगा बहि जाती।।2।।
पाना ज्यूँ पीली पड़ी रे, (बाला) अन्न नहिं खाती।
हरि बिन जिवड़ो यूँ जलै रे, (बाला) ज्यूँ दीपक सँग बाती।।3।।
साँचा कुल चकोर चन्दा, झोलै बहि जाती।
ब्रजनारी की बीनती रे, (बाला) राम मिले मिल जाती।।4।।
मनैं भरोसो राम को रे, (बाला) डूबत तार्यो हाथी।
दासी मीराँ लाल गिरधर, साँकड़ा रो वोही साथी।।5।।[1]
राग - झंझोटी : ताल - कहरवा
(विरह)