सखि री काहैं गहरू लगावति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


सखि री, काहैं गहरु लगावति?
सब कोउ ऐसौ सुख सुनि कै, क्यौं नाहिं उठि धावति।
आजु सो बात बिधाता कीन्ही, मन जो हुती अति भावति।
सुत कौ जन्म जसोदा कैं गृह, ता लगि तुम्है बुलावति।
कनक-थार भरि, दधि-रोचन लै, बेगि चलौ मिलि गावति।
आनँद उर अंचल न सम्हारति, सीस सुमन बरषावति।
सूरदास सुनि जहाँ-तहाँ तैं आवत सोभा पावति॥23॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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