सजनी निरखि हरि कौ रूप -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट नारायन


सजनी निरखि हरि कौ रूप।
मनसि बचसि बिचारि देखौ, अंग अंग अनूप।।
कुटिल केस सुदेस अलिंगन, बदन सरदसरोज।
मकर-कुंडल-किरनि की छवि, दुरत फिरत मनोज।।
अरुन अधर कपोल नासा, सुभग ईपद हास।
दसन की दुति तडित, नव ससि, भ्रकुटि मदनबिलास।।
अंग अंग अनंग जीते, रुचिर उर बनमाल।
‘सूर’ सोभा हृदय पूरन, देत सुख गोपाल।।1822।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः