सत्त्व आदि गुणों का और प्रकृति के नामों का वर्णन

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अनुगीता पर्व के अंतर्गत अध्याय 39 में सत्त्व आदि गुणों का और प्रकृति के नामों का वर्णन हुआ है।[1]

ब्रह्मा द्वारा सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ब्रह्मा जी ने कहा- महर्षियो! सत्त्व, रज और तम- इन गुणों का सर्वथा पृथक रूप से वर्णन करना असम्भव है, क्योंकि ये तीनों गुण अविच्छिन्न (मिले हुए) देखे जाते हैं। ये सभी परस्पर रँगे हुए, एक दूसरे से अनुप्राणित, अन्योन्याश्रित तथा एक दूसरे का अनुसरण करने वाले हैं। इसमें संदेह नहीं कि इस जगत में जब तक सत्त्चगुण रहता है, तब तक रजोगुण भी रहता है एवं जब तक तमोगुण रहता है, तब तक सत्त्वगुण और रजोगुण की भी सत्ता रहती है, ऐसा कहते हैं। ये गुण किसी निमित्त से अथवा बिना निमित्त के भी सदा साथ रहते हैं, साथ ही साथ विचरते हैं, समूह बनाकर यात्रा करते हैं और संघात (शरीर) में मौजूद रहते हैं। ऐसा होने पर भी कहीं तो इन उन्नति और अवनति के स्भाव वाले तथा एक दूसरे का अनुसरण करने वाले गुणों से किसी की न्यूनता देखी जाती है और कहीं अधिकता। सो किस प्रकार? यह बताया जाता है। तिर्यग योनियों में जहाँ तमोगुण की अधिकता होती है, वहाँ थोड़ा रजोगुण और बहुत थोड़ा सत्त्वगुण समझना चाहिये। मध्यस्त्रोता अर्थात मनुष्ययोनियों में, जहाँ रजोगुण की मात्रा अधिक होती है, वहाँ थोड़ा तमोगुण और बहुत थोड़ा सत्त्वगुण समझना चाहिये। इसी प्रकार ऊर्ध्वंस्त्रोता यानि देवयोनियों में जहाँ सत्त्वगुण की वृद्धि होती है, वहाँ तमोगुण अल्प और रजोगुण अल्पतर जानना चाहिये। सत्त्वगुण इन्द्रियों की उत्पत्ति का कारण है, उसे वैकारिक हेतु मानते हैं। वह इन्द्रियों और उनके विषयों को प्रकाशित करने वाला है।

सत्त्वगुण से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं बताया गया है। सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद एवं आलस्य आदि में स्थित हुए तामस मनुष्य अधोगति को प्राप्त होते- नीच योनियों अथवा नरकों में पड़ते हैं। शूद्र में तमोगुण की, क्षत्रिय में रजोगुण की और ब्राह्मण में सत्त्वगुण की प्रधानता होती है। इस प्रकार इन तीन वर्णों में मुख्यता से ये तीन गुण रहते हैं। एक साथ चलने वाले ये गुण दूर से भी मिल हुए ही दिखायी पड़ते हैं। तमोगुण, सत्त्वगुण और रजोगुण- ये सर्वथा पृथक-पृथक हों, ऐसा कभी नहीं सुना। सूर्य को उदित हुआ देखकर दुराचारी मनुष्यों को भय होता है और धूप से दु:खित राहगीर संतप्त होते हैं। क्योंकि सूर्य सत्त्वगुण प्रधान हैं, दुराचारी मनुष्य तमोगुण प्रधान हैं एवं राहगीरों को होने वाला संताप रजोगुण प्रधान कहा गया है। सूर्य का प्रकाश सत्त्वगुण है, उनका ताप रजोगुण है और अमावास्या के दिन जो उन पर ग्रहण लगता है, वह तमोगुण का कार्य है। इस प्रकार सभी ज्योतियों में तीनों गुण क्रमश: वहाँ-वहाँ उस-उस प्रकार से प्रकट होते और विलीन होते रहते हैं। स्थावर प्राणियों में तमोगुण अधिक होता है, उनमें जो बढ़ने की क्रिया है वह राजस है और जो चिकनापन है वह सात्त्विक है। गुणों के भेद से दिन को भी तीन प्रकार का समझना चाहिये। रात भी तीन प्रकार की होती है तथा मास, पक्ष, वर्ष, ऋतु और संध्या के भी तीन-तीन भेद होते हैं।[1]

प्रकृति के नामों का वर्णन

गुणों के भेद से तीन प्रकार से दान दिये जाते हैं। तीन प्रकार का यज्ञानुष्ठान होता है। लोक, देव, विद्या और गति भी तीन-तीन प्रकार की होती है। भूत, वर्तमान, भविष्य, धर्म, अर्थ, काम, प्राण, अपान और उदान- ये सब त्रिगुणात्मक ही हैं। इस जगत में जो कोई भी वस्तु भिन्न भिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न प्रकार से उपलब्ध होती है, वह सब त्रिगुणमय हैं। सर्वत्र तीनों गुणों की ही सत्ता है। ये तीनों अव्यक्त और प्रवाह रूप से नित्य भी है। सत्त्व,रज और तम- इन गुणों की सृष्टि सनातन है। प्रकृति को तम, व्यक्त, शिव, धाम, रज, योनि, सनातन, प्रकृति, विकार, प्रलय, प्रधान, प्रभव, अप्यय, अनद्रिक्त, अनून, अकम्प, अचल, ध्रुव, सत्, असत्, अव्यक्त और त्रिगुणात्मक कहते हैं। अध्यात्म तत्त्व का चिन्तन करने वाले लोगों को इन नामों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। जो मनुष्य प्रकृति के इन नामों, सत्त्वादि गुणों और सम्पूर्ण विशुद्ध गतियों को ठीक-ठीक जानता है, वह गुण विभाग के तत्त्व का ज्ञाता है। उसके ऊपर सांसारिक दु:खों का प्रभाव नहीं पड़ता है। वह देह त्याग के पश्चात सम्पूर्ण गुणों के बन्धन से छुटकारा पा जाता है।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 39 श्लोक 1-18
  2. महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 39 श्लोक 19-25

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