सखीरी लाज वेरण भई -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग जौनपुरी




सखीरी लाज वेरण भई ।।टेक।।
श्रीलाल गोपाल के सँग, काहे नाहीं गईं।
कठिन क्रूर अक्रूर आयो, सजि रथ कहँ नई।
रथ चढ़ाय गोपाल लैगो, हाथ मींजत रही।
कठिन छाती स्याम बिछुरत, विरह तें तन तई।
दासि मीरां लाल गिरधर, बिखर क्यूँ ना गईं ।।183।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. - बैरण = शत्रु, बाधक। काहे = क्यों। लैगो = ले गया। हाथ... रही = पछताती रह गई। कठिन = कठिन हृदय का। अक्रूर = कंस का दूत जो कृष्ण का चचा लगता था और जो उन्हें वृन्दावन से रथ पर चढ़ा कर मथुरा ले गया था। नं = से। तई = संतप्त रही। बिर क्यूँ ना गई = टुकड़े क्यों न हो गई।

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