सतुगुरु चरन भजे बिनु विद्या -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग घनाश्री


 
सतुगुरु चरन भजे बिनु विद्या, कहु कैसे कोउ पावै।
उपदेसक हरि दूरि रहे तै, क्यौ हमरे मन आवै।।
जौ हित कियौ तौ अधिक करहिं किन, आपुन आनि सिखावै।
जोग बोझ तैं चलि न सकै तौ, हमही क्यौ न बुलावै।।
जोग ज्ञान मुनि नगर तजे बरु, सघन गहन वन धावै।
आसन मौन नेम मन संजम, बिपिन मध्य बनि आवै।।
आपुन कहै करै कछु औरै हम सबहिनि दहकावै।
'सूरदास' ऊधौ सौ स्यामा अति सकेत जनावै।।3709।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः