सखी सबै मिलि कान्ह निहारौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री


सखी सबै मिलि कान्ह निहारौ।
जसुमति उर लावति, कर पल्लव सात दिवस गिरि धारौ।।
पूजा बिधि मेटो जु सक्र की, तिनि जिय द्रोह बिचारौ।।
छाँड़ै मेघ मत्त परलै के, गरजि गयँद-सुँडि धारौ।।
अति आरत जाने ब्रजबासी, सिसु गिरि नैंकु निहारौ।
अनायास अहि-छत्र छिनक मैं, खेलत माँभ उपारौ।।
सुरपति कौ कियौ मान-भंग हरि, ब्रज आपनौ उबारौ।
सूरदास कौ जीवन गिरिधर, जसुमति-प्रान-दुलारौ।।968।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः