सजनी स्याम सदाई ऐसे।
एक अंग की प्रीति हमारी वै जैसे के तैते।।
ज्यौं चकोर चंदा कौं चाहैं, चंदा नैकु न मानै।
जल कैं तीर मीन तन त्यागै, नीर निठुर नहिं जानै।।
ज्यौं पतंग उड़ि परै ज्याति तकि, वाके नैकु न भाऐं।
चातक रटि-रटि जन्म गँवावै जल वै डारत खाऐं।।
उनहूँ तैं निर्दयी बड़े वै, तैसियै मुरली पाई।
सूर स्याम जैसे तैसी वह भली बनी अब माई।।1278।।