सकट साजि सब ग्वाल चले -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


सकट साजि सब ग्वाल चले मिलि गिरि-पूजा कैं काज।
घर-घर तैं मिष्टान्न चले बहु भाँति-भाँति के बाज।।
अति आनंद भरे मिलि गावत, उमड़े फिरत अहोर।
पैंड़ौ नहिं पावत तहँ कोऊ, ब्रजबासिनि की भोर।।
एक चले आवत व्रज-तन कौं, इक ब्रज तैं बन-काज।
सूरदास तहँ स्याम सबनि कौं, देखियत है सिरताज ।।828।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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