सनकादिक नारद मुनि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


सनकादिक नारद मुनि, सिव बिरंचि जान।
देव-दुंदुभी मृदंग, बाजे वर निसान।।
बारन तोरन बंधाइ, हरि कीन्ह उछाह।
ब्रज की सब रीति भई, बरसानैं ब्याह।।
डोरनि कर छोरन कौं, आई सकल धाइ।
फूली फिरैं सहचरि उर, आनँद न समाइ।।
गज वर गति आवन मग, धरनि धरत पाउ।
लटकत सिर सेहरो मनु सिखि सिखंड भाउ।।
सोभित संग नारि अंग, सबै छबि बिराजि।
गज रथ बाजी बनाइ, चँवर छत्र साजि।।
दुलहिनि वृषभानु-सुता, अंग-अंग भ्राज।
सूरदास देखौ श्री, दूलह ब्रजराज।।1074।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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