सखी, म्हारो कानूड़ो कलेजे की कोर -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग छायाटोड़ी





सखी, म्हारो कानूड़ो कलेजे की कोर ।।टेक।।
मोर मुगट पीतांबर सोहै, कुंडल की झकझोर ।
बिन्द्राबन की कुंज गलिन में, नाचत नंद कि‍सोर ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चरण कँवल चितचोर ।।167।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हारो = हमारा, मेरा। कानूड़ो = कान्ह, श्रीकृष्ण (‘डो’ प्रत्यय प्रेमप्रदर्शनार्थ लगाया गया है ) कलेजे की कोर = हृदय का टूकड़ा, अत्यन्त प्रिय। झकझोर = झकोर कर, हिलाकर। चित चोर = चित्त को वश में करने वाले।

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