श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी145.श्री सनातन वृन्दावन को और प्रभु पुरी को
प्रभु की इस बात को सुनकर उस बच्चे ने आकर प्रभु के पैर पकड़ लिये और रोते-रोते उनसे मट्ठा पीने की प्रार्थना करने लगा। दयालु प्रभु, उसके आग्रह को टाल न सके और उसके कहने से उस मिट्टी के बड़े बर्तन के सम्पूर्ण मट्ठे को पी गये। मट्ठे को पीकर प्रभु ने जोरों से उस लड़के को आलिंगन किया। प्रभु का आलिंगन पाते ही वह प्रेम में उन्मत्त होकर 'हरि हरि' कहकर नृत्य करने लगा उस समय उसकी दशा बड़ी ही विचित्र हो गयी थी। उसके शरीर में सात्त्विक भाव उदय होने लगे। इस प्रकार प्रभु उस बालक को प्रेमदान देकर आगे बढ़े। कई दिनों के पश्चात प्रभु पुरी के समीप पहुँच गये। दूर से ही उन्हें श्री जगन्नाथ जी की पताका दिखायी दी। श्री मन्दिर की पताका दर्शन होती ही, प्रभु ने भूमि में लोटकर जगन्नाथ जी की फहराती हुई विशाल पताका को प्रणाम किया और वे अठारह नाला पर पहुँचे, अठारह नालापर पहुँचकर आपने भक्तो को खबर देने के निमित्त बलभद्र भट्टाचार्य को भेजा और आप वहीं थोड़ी देर तक बैठकर रास्त की थकान मिटाने लगे। |